बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
अध्याय - 6
रीतिकाल
प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
अथवा
रीतिकाल की प्रमुख काव्यधाराओं का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
हिन्दी की रीतिमुक्त काव्यधारा का परिचय दीजिए।
अथवा
रीतिमुक्त काव्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -
उत्तर मध्यकाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण हिन्दी साहित्य का उत्तर मध्यकाल सन् 1643 ई. से 1743 तक है, जिसमें सामान्य रूप से शृंगारपरक लक्षण ग्रन्थों की रचना हुई। नामकरण की दृष्टि से विद्वानों में मतभेद रहा है। मिश्र बन्धुओं ने इसे 'अलकृत काल कहा' है जबकि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'रीतिकाल' और पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने 'श्रृंगार काल' की संज्ञा दी है, अतः इस युग में 'अंलकार' विशेषण इस युग की कात्यांग निरूपण प्रवृत्ति के लिये ग्रहण किया जाये तो असंगत नहीं पर चूकी अंलकृत शब्द इस युग की कविता का ही विशेषण हो सकता है। इसीलिये इस युग की सीमा तक अंलकार' कहना भी युक्त नहीं हो सकता है।
जहाँ तक 'रीति' और श्रृंगार का प्रश्न है वो दोनों ही अपने अपने स्थानों पर महत्वपूर्ण हैं। इस युग के लिये रीति विशेषण का प्रयोग करने वाले 'आचार्य चन्द्र शुक्ल' ने तक इसे 'शृंगारकाल' कहे जाने में आपत्ति नहीं प्रकट की। इस युग की श्रृंगार काल रचना सर्वथा समीचीन है। इस नाम के पक्ष में जो यह तर्क दिया जाता है कि इस युग के कवियों की व्यापक प्रवृत्ति शृंगार वर्णन की थी, उसके स्वीकार किये जाने में आपत्ति की जा सकती है वैसे, इस युग में अनेक ऐसे कवि भी हुए हैं जो इस प्रकार के वर्णन करने पर अपने कर्म से असंतुष्ट रहे हैं।
नृपत्ति नैन कमलनि वृथा, चितवत वासर जाहि।
हृदय कमल में हेरि लै, कमलामुखी, कमलाहि ॥
ये लोग यद्यपि उस अर्थ में आचार्य नहीं थे, जिसमें की संस्कृत के काव्यशास्त्र विवेचक आचार्य आते हैं पर स्वच्छ और सुबोध निरूपण के कारण 'शिक्षक' के अर्थ में तो आचार्य कहे जा सकते हैं। इनमें चिन्तामणि, कुलपति, दास, प्रतापसाहि, आदि तो ऐसे हैं, जिन्होनें इस क्रम को बड़े मनोयोग के साथ ग्रहण किया है। इस युग को रीति विशेषण सहित प्रयोग में लाने का प्रश्न है। उसके विषय में यह सहज ही कहा जा सकता है कि 'शृंगार काल' की अपेक्षा अधिक संगत और वैज्ञानिक है। कारण यह कि इनमें 'रीति' सम्बन्धी ग्रन्थ ही अधिकता से ही लिखे गये, अपितु इस युग के कवियों की प्रवृत्ति भी ऐसे ही ग्रन्थ रचना की थी। इन कवियों ने यदि शृंगारिक ग्रन्थ रचे भी तो वो सामान्यतः स्वतंत्र रूप से रचित न होकर श्रृंगार रस की लक्षणों की सामग्री के लक्षणों के उदाहरण होने के कारण रीतिबद्ध ही थे अपितु इस अविधान को स्वीकार कर लेने में सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी परिधि के भीतर केवल वे लक्षण और लक्ष्य ग्रन्थ नहीं आ जाते जो श्रृंगारिक रचनाओं से युक्त हैं।
भाषा साहित्य के इतिहास अध्ययन में कवियों की प्रवृत्ति का विवेचन करने के लिये जिस प्रकार वर्ण्य विषय के अनुसार रचनाओ का वर्ग विभाजन तथा उस प्रवृत्ति के द्योतक प्रत्येक प्रकरण के साहित्य में र्भी अपना अमूल्य स्थान ग्रहण करते देखे जाते हैं फिर भी उस युग की कार्य सीमा का मूल्याँकन करना हमारे लिये सबसे बड़ी समस्या का मूल कारण बनती है। उसी प्रकार उस प्रवृत्ति के प्रेरक तत्वों का विशेषण करने तथा तत्सम्बन्धी परिमाण की रचनाओं को आँकने के निमित्त उसके प्रसार काल की सीमाएँ निर्धारित कर लेना भी आवश्यक प्रतीत हुआ करता है।
दरबारी संस्कृति और लक्षण काव्य परम्परा
रीतिबद्ध कविता की प्रेरणा स्रोत प्रायः दरबारी संस्कृति है, जिससे कि श्रृंगारी भावना वासना को व्यक्त करने के लिये ही प्रयुक्त हुई है। रीतिबद्ध कवियों के आश्रयदाता सामन्त, सूरदास, राजा और महाराज आदि उच्च वर्ग के लोग मुगलों की मिली विरासत में डुबे हुये थे। इसीलिये उनकी प्रेरणा से रचे हुये काव्य में स्वभावतया ही लौकिक प्रेम और उसके व्यंजन बाह्य सौन्दर्य के वर्णन बहुत अधिक है। वर्णनों में अलंकरण की कुशलता भी दर्शनीय है। बिहारी की अध्यात्मक उक्तियाँ इसका उदाहरण हैं। इन श्रृंगारी भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम कृष्ण राधा की मधुर भाव की भक्ति बनी और राधा-कृष्ण साधारण नायक-नायिका के रूप में चित्रित किये जाने लगे।
से
श्रृंगारकाल में रीतिबद्ध कवियों की प्रमुखता है। इन कवियों ने रीति या शास्त्र की भूमिका पर अपनी कविता का निर्माण किया है। इन्हें संस्कृत के शास्त्र पक्ष की समद्ध भूमिका मिली थी। इसीलिये इनमें कुछ कवियों ने काव्य शास्त्र के लक्षणों को पदबद्ध करके लक्ष्य रूप मे अपनी रचना प्रस्तुत की है। कुछ कवियों ने लक्षण ग्रन्थ नहीं लिखे, किन्तु उसका सारा बन्धन रीति की परिपाटी पर है। इस प्रकार लक्षण और लक्ष्य दो प्रकार के काव्य ग्रन्थों की रचना रीतिबद्ध कवियों ने की। केशवदास ने सर्वप्रथम शास्त्रीय पद्धति पर रस और अंलकारों का निरूपण रसिकप्रिया और कविप्रिया में किया किन्तु चिन्तामणि त्रिपाठी से लक्षण ग्रन्थों की अखण्ड परम्पर चलती है। इस प्रकार लक्षण ग्रन्थों की बहुलता हो गयी। रीति - परम्परा का वर्णन करते हुये इस पर विस्तार से विवेचन करेंगे, किन्तु लक्षण ग्रन्थों की प्रधानता के सम्बन्ध में वह है इनमें मौलिकिता का अभाव है। इन ग्रन्थों मे रीतिबद्ध कवियों ने भी कोई मौलिक उद्भावना नहीं की है। वरन् संस्कृत के काव्यशास्त्र विवेचन को भाषा में पद्यबद्ध कर दिया है, किन्तु फिर भी रीति की परिपाटी का ज्ञान हुए बिना इनकी कविता को अच्छी तरह नहीं समझा जा सकता है।
रीतिकाल की प्रमुख धाराएँ
1- रीतिबद्ध - जिन कवियों ने काव्यगत नियम के आधार पर रचना की उसे रीतिबद्ध कहते हैं। नायक-नायिका का भेद अलंकार वर्णन स्वीकार किया। इस युग के रीतिबद्ध कवि संस्कृत के कवि में अन्तर है। दोनों कवि पृथक हैं। हिन्दी के रीतिकालीन काव्य में अन्तर नहीं है - केशव, चिन्तामणि, मतिराम, देव, पद्माकर इसी काव्यधारा के कवि है। इनकी विशेषता है कि काव्य भी इनका साधन था और साध्य भी ये कविता करते थे और प्रदर्शन इनका मुख्य ध्येय था। ये रीतिकालीन कविता के अन्तर्पक्ष की हत्या कर देते थे। इनके काव्य में हृदय की प्रधानता नही थी बल्कि भाषा का चमत्कार था।
2- रीतिसिद्ध - इस युग में काव्य का दूसरा रूप रीतिसिद्ध कवियों का है, जिनमें लक्षण ग्रन्थ प्रस्तुत करने की क्षमता थी। इन कवियों ने अपने काव्य के माध्यम से लक्षणों को प्रस्तुत किया है। कवि इस युग का अत्यधिक प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रथम कोटि के कवियों में श्रेष्ठ कवि थे। कवि बिहारी का ग्रन्थ बिहारी सत्सई इसी प्रकार का ग्रन्थ है। इस प्रकार के काव्य में औचित्य प्रदर्शन का भाव नहीं है।
3- रीतिमुक्त - तीसरा वर्ग उन कवियों का है, जिसने काव्य रचना के प्रति विद्रोह की भावना व्यक्त की, ऐसे कवि को रीतिमुक्त कवि कहा जाता है। इन्होनें अपने स्वछन्द भाव से वैयक्तिक भावनाओं को व्यक्त किया है। इन पर न तो शास्त्र का बन्धन है और न आश्रयदाता की रुचियों का दबाव काव्य इनके लिए साध्य न होकर साधन था। इन कवियों ने प्रेम वियोग की वेदना चित्रित की, इसमें हृदय की प्रधानता है बुद्धि की नहीं। नायिका भेद, दूती प्रसंग, आदि इनके भेद हैं। आलम, बोधा धनान्द आदि इसी प्रकार के कवि हैं। इनकी विशेषतायें बीसवीं सदी के छायावादी युग में देखने को मिलती है। रीतिकालीन काव्य मनुष्य की इच्छा वासनाओं का काव्य हैं। सन 1700 से लेकर 1900 तक के काल को हिन्दी साहित्य में रीतिकाल के नाम से अविहित किया जाता है।
रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ व विशेषताएँ
शृंगारकाल का साहित्य मध्यकालीन दरबारी संस्कृति का प्रतीक है। इस श्रृंगारी कविता में रीति और अलंकार का प्रधान्य हो गया है जो कवि दरबारी संस्कृति को त्याग सके, उनकी कविता में प्रेम की पुकार का स्वरूप रीति से मुक्त है। इस कल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ इस प्रकार है।
1- शृंगार रस का प्रधान्यः लौकिक शृंगार की व्यंजना,
2- दरबारी संस्कृति और काम वासना का उद्दीपन,
3- काम प्रवृत्ति का स्वच्छन्द निरूपण,
4- नारी सौन्दर्य चित्रण,
5- रीतिबद्ध कवियों पर फारसी शैली का प्रभाव,
6- नारी के प्रेमिका स्वरूप का प्रधान्य,
7- लक्षण ग्रंथों की प्रचुरता,
8- प्रकृति का अलंकार एव उद्धीपन हेतु चित्रण,
9- वीर रस की कविता,
10- भक्ति और नीति सम्बन्धी सूक्तियाँ।
रीतिकाल के रचनाकार और रचनाएँ
चिन्तामणि -कविकुल कल्पतरु, रसविलास, काव्यविवेक, शृंगारमंजरी, छन्दविचार।
मतिराम - रसराज, ललितललाम, सतसई, अलंकार, पंचाशिका, वृत्तकौमुदी।
भूषण - शिवराज भूषण, शिवाबावनी, छत्रशालदशक, अलंकार प्रकाश।
बिहारी - बिहारी सतसई।
आलम - आलमकेलि।
बोधा - विरहवारिश, इश्कनामा।
पजनेश - काव्य भूषण, रसिक विलास, पिंगल।
बेनी प्रवीण - टिकेतराय, मंड़ौवा-संग्रह, रसविलास।
ग्वाल - यमुनालहरी, रसरंग, कविदर्पण आदि।
द्विजदेव - श्रृंगार लतिका, शृंगार बत्तीसी, शृंगार चालीसी, कविकल्पदुम।
इस प्रकार उक्त सभी प्रवृत्तियों के आधार पर इस युग के काव्य के मुख्यतः ये पाँच प्रवृत्ति बल्कि सूचक वर्ग कहे जा सकते हैं - रीति काव्य, रीतिमुक्त काव्य, भक्ति काव्य, नीति काव्य और वीर काव्य।
रीतिकाल गद्य साहित्य
रीतिकाल में गद्य-निर्माण भक्तिकाल की अपेक्षा अधिक हुआ। इस युग की ब्रजभाषा और राजस्थानी गद्य का निश्चय ही पर्याप्त समृद्ध, प्रौढ़, प्रचुर और बहुमुखी है। खड़ी बोली, दक्खिनी, मैथिली आदि अन्य विभाषाओं में भी इस काल में भी गद्य लेखन की प्रवृत्ति भक्तिकाल की तुलना में अधिक सक्रिय रही। पुस्तक परिचय निबन्धात्मक रचनाएँ और जीवनी - शैली की रचनाएँ भी प्राप्त हैं, शिलालेखों, भित्ति प्रशस्तियों और कागज पत्रों के रूप में भी गद्य के नमूने प्राप्त होते हैं। इनके अतिरिक्त उन्नीसवीं सदी के प्रथम चरण से पाठ्य पुस्तकों और समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ स्वतन्त्र ग्रन्थों के अतिरिक्त पद्य प्रधान रीति-ग्रन्थों और अन्य पद्य ग्रन्थों में वात, वचनिका, वार्ता, चर्चा, तिलक आदि शीर्षकों से जहाँ-तहाँ टिप्पणी - रूप में गद्य का प्रयोग हुआ। इस समय के गद्य में प्रतिपादित विषय है धर्म, दर्शन, आध्यात्म, इतिहास, भूगोल, चिकित्सा, ज्योतिष, काव्यशास्त्र, शकुनशास्त्र, प्रश्नशास्त्र, सामुद्रिक, गणित और व्याकरण। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से विज्ञान विषयक पाठ्य-पुस्तकें भी लिखी जाने लगी थीं। धार्मिक ग्रन्थों और काव्यग्रन्थों की टीकाओं के अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत और फारसी की कथात्मक कृतियों तथा योग वेदान्त, वैद्यक, ज्योतिष आदि विषयों की रचनाओं के अनुवाद भी रीतिकाल में हुए।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।